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अंतरिक्ष युद्धम 3

शाम को राज अपने घर में था। उसके ठीक सामने टीवी चल रहा था। लेकिन राज का ध्यान टीवी की ओर न होकर सिर्फ और सिर्फ अपने पीठ दर्द की ओर था। आज डॉक्टर से तो बात की लेकिन फिर भी उसे संतुष्टि नहीं मिली थी।


    उसके घर के किचन से शानदार खाने की खुशबू आ रही थी। राज की मां मिस शीला देवी अपने स्वादिष्ट खाने लिए पूरी बस्ती में जानी जाती थी। उनकी पड़ोसनें भी इस स्वाद की तारीफ किये बिना नहीं रहती थी। भले ही उनकी इस तारीफ में ईर्ष्या और जलन के भाव होते थे लेकिन कहते हैं न तारीफ कैसी भी हो; तारीफ तो तारीफ होती है। भले ही वो बुझे मन से की गई हो। शीला देवी का स्वभाव शांत प्रवृत्ति का था। ऐसे बहुत ही कम मौके होते थे जब उन्हें गुस्सा आता था। बच्चों की शरारते भी वह हंसकर टाल देती थी। यहां तक की उन्होंने कभी पूजा पर भी गुस्सा नहीं किया। पूजा घर में सबसे ज्यादा शरारती थी। उसकी डिक्शनरी में हर वो काम था जो इंसान करने की सोच भी नहीं सकता था। फ्रिज से खाने का सामान खा जाना, पार्क में लगे पौधों को उजाड़ना, अपने पापा के सामान को कहीं भी छुपा देना और खासकर राज को कभी न सोने देना। यह उसकी शरारतों के कुछ नमूने थे। राज को तो वह घर में सबसे ज्यादा तंग करती थी।

    घर का काम संभालने के अलावा शीला देवी के हाथ में एक एनजीओ के संचालन की भी जिम्मेदारी थी। यह एनजीओ खासतौर पर बूढ़े हो चुके लोगों की जरूरतों को पूरा करता था। ऐसी जरूरतें जिन्हें पूरा कर पाने में उनके बेटे या बेटियां असमर्थ थे। छोटे परिवारों के चलन ने बूढ़े लोगों को अकेला और एनजीओ के सहारे रहने पर मजबूर कर दिया था। शीला देवी की शांत प्रवृत्ति में इस एनजीओ का बहुत बड़ा हाथ था। यहां के लोगों के साथ अपना समय बिताने पर उन्हें जो अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती थी वो और कहीं नहीं मिलती थी। अनुभवी लोगों की बातें अक्सर दिमाग को मोह लेती है, जो सीधे-सीधे आपके व्यवहार पर असर डालती हैं।

    इसके अतिरिक्त शीला देवी और उनका परिवार एक आधुनिक शहर का हिस्सा था, हालांकि यह शहर बाकी शहरों जैसा ही था लेकिन एक चीज थी जो उसे दूसरे शहरों से अलग बनाती थी, वह था शहर का डिजाइन और वहां के रहन-सहन का ढंग! वह पुराने जमाने के शहरों की प्रतिकृति करके बनाया गया था। इसकी तुलना मोहनजोदड़ो सभ्यता से भी की जा सकती थी जहां की संस्कृति अपने आप में उन्नति का अनूठा नमूना थी। शहर में हर तरह की सुख सुविधा थी। रहने के लिए आलिशान और बड़े घर, घूमने के लिए हरियाली से भरे पार्क, और गाड़ियों के आवा-जाही के लिए सुंदर सड़कें। इसे बसाने वाले राजनीतिक नेता चाहते थे कि यहां सिर्फ शहर के विकसित लोग ही रहें ताकि उन लोगों को भारत की अन्य जगहों की भीड़ भाड़ वाली जिंदगी से अलग कर एक सुंदर माहौल दिया जा सके पर धीरे धीरे यहां रहने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती गयी। इस तरह के कदम सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए एक मार्गदर्शन का विषय बनते हैं। लोगों के अंदर एक इच्छा जागती है की जल्द से जल्द पदोन्नति कर शहर में रहने का जुगाड़ किया जाए। सरकार ने इस शहर को ऐसा बना दिया था जिससे भारत की दूसरी जगह का रहने वाला हर व्यक्ति इसी शहर में रहने के सपने देखता था। इस चाहत का उपयोग करके वे अपने सरकारी कामों को भी और निखार कर सामने लाते रहते थे। खुशकिस्मती से राज के पिता एडवांस मिलिट्री का हिस्सा थे। राज के पिता को वहीं से शहर में रहने का मौका मिला और उसका पूरा-पूरा फायदा राज और उसके परिवार ने उठाया। यहां बेहतर सुख सुविधाओं के अलावा बेहतर शिक्षा के अवसर भी काफी थें।

    शीला देवी अभी भी अपने खाने को स्वाद देने में लगी हुई थी। तभी राज ने उसे आवाज लगाई।

    "मां, जरा एक गिलास पानी देना। मुझे दवाई खानी है, फिर ऊपर छत पर घूमने जा रहा हूं।" राज की पीठ दर्द वाली परेशानी से वह भी वाकिफ थी। इसलिए जब उसे लगा राज बहुत ज्यादा परेशान हो रहा है तब उन्होंने ने ही राज को अस्पताल जाने की सलाह दी थी।

    उन्होंने पानी का गिलास भरा और लेकर राज के पास गई। वहां बातों बातों में ही उन्होंने पूछा “तो क्या कहा डॉक्टर ने तुम्हारी पीठ दर्द की समस्या ठीक तो हो जाएगी न? अब यह दर्द मुझसे भी नहीं देखा जाता, तुम्हारे पिता को मैंने इसके बारे में बताया था पर उन्होंने 'जवान खुन है, अपने आप सही हो जाएगा' कहकर टाल दिया था। अब तुम ही बताओ क्या लगता है तुम्हें? सब सही है ना??"

    राज थोड़ा व्याकुल था और इस बात से परेशान भी कि वह अपनी मां को बताए या नहीं। अगर वह मां को एडवांस एक्स-रे स्कैनिंग के बारे में बताता है तो शायद उनकी परेशानी और बढ़ जाएगी, वह पहले से भी ज्यादा चिंता करने लगेंगी। इन हालातों में चीजों को छुपाना ही बेहतर था। राज ने एक लंबी सांस ली और चेहरे को खुशनुमा करते हुए कहा "घबराने की कोई बात नहीं है माँ, डॉक्टर ने कहा है बस बैक पेन है। कुछ दिनों तक अगर सही से आराम करोगे तो ठीक हो जाओगे और उन्होंने दवाई खाते रहने को भी हिदायत दी है।”

    राज ने जिस अंदाज में कहा था उन्हें बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वह झूठ बोल रहा है हालांकी शीला देवी के चेहरे पर आशंका की लकीरे जरूर थी। कई महीनों का पीठ दर्द थोड़े से आराम से ठीक हो जाएगा!! यह बात उन्हें हजम नहीं हो रही थी, लेकिन फिर उन्होंने सोचा राज मुझसे झूठ क्यों बोलगा, हो सकता है ऐसा ही कुछ हो और यह पीठ दर्द आराम करने से ठीक हो जाए।

    उन्होंने राज के गालों पर हाथ फेरते हुए जवाब दिया "पता नहीं तुम सच कह रहे हो या झूठ, लेकिन अगर ऐसा है तो तुम आज से कोई काम नहीं करोगे, तुम्हारा बाहर आना जाना बंद और चुपचाप कमरे में बैठकर सिर्फ और सिर्फ आराम करोगे" उन्होंने अंत में उसे थोड़ा सा झिडकं भी दिया। वैसे वह उनकी बात माने या ना माने पर जब वह उसे झिड़क देती थी तब राज कभी उन्हें मना नहीं करता था।

    "ठीक है, पर अभी तो छत पर जा सकता हूं ना?" राज ने हामी भरते हुए अपनी मां की बात सुनी और उठ कर खडा हो गया।

    "हां ठीक है जाओ। छत के लिए तो मना नहीं करूंगी, पर तुम्हारा बाहर आना जाना बंद।"

    राज मुस्कुराकर वहां से छत की ओर चला गया। हालांकि उसे इस बात का पछतावा जरूर था कि उसने अपनी मां से झूठ बोला लेकिन वह इस बात के बारे में भी सोच रहा था कि उन्हें बता कर परेशान नहीं किया जा सकता।

    ***

    ■■■

    जल्द ही एक वेटर मिशा के लिए खाना लेकर उसके कमरे में आ गया। इसरो द्वारा सर्व की जाने वाली हर एक डिश शानदार थी। मिशा के खाना खाते-खाते रात के 10:00 बज चुके थे। खाना खत्म करने के बाद वेटर अपने आप आकर मिशा के बर्तन ले गया।

    जल्द ही मिस्टर रावत मिशा के कमरे में दोबारा नजर आए।

    "मिशा जी, आपको खाना कैसा लगा? खाने में कोई कमी तो नहीं थी?" उन्होंने आते ही पूछा।

    "नहीं नहीं! खाने में कोई कमी नहीं थी।" मिशा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

    मिस्टर रावत ने भी सामने से मुस्कान दिखाई "अच्छा आप टहलने की सोच रही हैं क्या? चलिए छोटी सी वाॅक पर आ आते हैं।"

    "क्यों नहीं!" मिस्टर रावत ने मिशा ने मन की बात कह दी थी।

    जल्द ही दोनों बाहर की हल्की रोशनी के बीच पतली संकरी सड़क पर चलते हुए दिखाई दिए। रात के समय में चांद की दूधिया रौशनी से नहाई इसरो की बिल्डिंगों की चकाचौंध अपने आप में अलग थी।

    जिस संकरी सड़क पर वह चल रहे थे उसके दोनों ओर छोटे-छोटे पौधे लगे हुए थे।

    दूर मुख्य गेट दिखाई दे रहा था जिसके ऊपर बड़े बड़े अक्षरों में अंग्रेजी में लिखा हुआ था 'ISRO'.

    पीछे की तरफ जो मुख्य बिल्डिंग थी उसके ऊपर भी इसरो का बड़ा और गोल लोगो लगा हुआ था।

    मिस्टर रावत ने चलते-चलते बताया "इसरो की स्थापना भारतीय सरकार ने सन 1962 में ही कर दी थी। तब डॉक्टर विक्रम साराभाई को इसरो का संस्थापक बनाया गया था। इसके कुछ ही महीनों बाद भारत ने तिरुवंतपुरम में थुंबा भूमध्यी रॉकेट प्रमोचन केंद्र की स्थापना की थी। शुरुआती समय में इसरो के मिशन सिर्फ वायु मंडलीय परतों की जानकारी इकट्ठा करना होता था लेकिन धीरे-धीरे उसके काम करने का दायरा बढ़ता गया। अगले कई वर्षों में इसरो ने आम जनता व राष्ट्रीय सेवा के लिए कई सराहनीय काम किए जिनके चलते जल्द ही वह विश्व की छठी सबसे बड़ी एजेंसी बन गई। उस समय इसरो के पास भारी मात्रा में इनसेट उपग्रह तथा सुदूर संवेदन उपग्रह ( आई.आर.एस) मौजूद थे। इन सब के जरिए सूचना प्रसारण, संचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन प्रणाली, भौगोलिक मानचित्र, नौसेना इत्यादि क्षेत्रों में इसरो ने अपनी पकड़मजबूत की। इन उपयोगों के अनुसार इसरो ने अपने अगले कदम में संपूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए विश्वसनीय प्रमोचक प्रणालियां विकसित की। इसरो द्वारा बनाया गया सबसे पहला रॉकेट जो गिने-चुने नामों में आता था वह पीएसएलवी था। पीएसएलवी की लागत कम होने के कारण यह जल्द ही दूसरे देशों का भी पसंदीदा बन गया। धीरे-धीरे इसरो भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में विदेश में भी अपना नाम बनाने लगा। इसके बाद इसरो ने संचार उपग्रहों को ध्यान में रखते हुए प्रमोचक वाहन जीएसएलवी की स्थापना की। इसके जरिए बड़े और भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाया जाता था। इसरो ने भारतीय शिक्षा में विज्ञान को एक नया स्थान दिया। जिससे लोगों की रुचि विज्ञान में बढ़ने लगी और विज्ञान शिक्षा का एक नया क्षेत्र बन गया। वर्तमान समय में इसरो को सहयोग देने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था का एक खास हिस्सा उनके लिए सुरक्षित किया गया है। अपनी बढ़ती विश्वसनीयता और बड़े-बड़े हासिल मुकामों के कारण आज इसरो ने अपनी जो प्रतिष्ठा बनाई है उसकी बराबरी कभी भी नहीं की जा सकती। भले ही एक समय, इसरो ने अपने कुछ अनुप्रयोगो में दिक्कतों का सामना किया था, जहां माना जाता है कि वह अपने कुछ सेटेलाइटों को बैलगाड़ी पर भी लाद कर लाए थे, लेकिन आज इन सब चीजों को पीछे छोड़ते हुए वह भारत की एक प्रतिष्ठित संस्था है।"

    मिस्टर रावत इसरो की कुछ खासियतें मिशा को बता रहे थे। 'इसरो' एक ऐसा नाम था जिस पर हर भारतीय को गर्व था। उन्होंने इसरो के इतिहास से लेकर उसके वर्तमान स्थिति के बारे में मिशा को अवगत करवाया। उसे हर वह चीज बताई जो वे जानते थे। हालांकि इनमें से काफी कुछ मिशा को भी पता था लेकिन वह इसरो घूमने आई थी। ऐसे में दोबारा इन बातों को जानना जरूरी था। दोनों चलते हुए कैंटीन तक आ चुके थे जहां एक जगह बैठ कर उन्होंने चाय का आर्डर दिया। मिस्टर रावत ने एक लंबी चाय की चुस्की ली।

    चाय की चुस्की लेते हुए वह आगे बोले "इसरो के इतिहास का सबसे शानदार पन्ना रहा उसका चंद्र यान और मंगलयान। यहां आते आते इसरो दूसरे ग्रहों के सपने देखने लगा था। धरती के चारों ओर सेटेलाइट की एक लंबी कतार खड़ी करने के बाद उसका अगला मकसद यही था कि अब वह लंबी यात्राओं को तयं करे। अपनी सबसे शुरुआती और छोटे मिशन में उन्होंने चांद तक के सफर को नामांकित किया। चांद तक जाने वाले इसरो के पहले प्रोजेक्ट का नाम चंद्रयान-1 था। इसे 2008 में चंद्रमा पर भेजा गया था जहां इसने कुछ महीने काम करके हमें चंद्रमा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी। इस मिशन ने पूरे विश्व में दुनिया को दिखा दिया कि अब भारत भी अंतरिक्ष के दूरदराज क्षेत्रों पर अपने झंडे गाड़ सकता था। इसी दौरान भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश भी बन गया। इस मिशन में इसरो का मुख्य उद्देश्य था वह चंद्रमा पर पानी और दूसरे तत्वों की तलाश करे लेकिन फिर भी इससे काफी सारी जानकारी मिली। इसके जरिए हमें चांद का एक भौगोलिक मानचित्र तैयार करने का खाका भी मिला। चांद तक जाने के बाद इसरो ने मंगल पर जाने की तैयारी की। कई वर्षों की मेहनत और अथक परिश्रम के बाद यह सपना 2013 में ही पूरा हो पाया। उस समय पूरे भारतवर्ष में कोई ऐसा शख्स नहीं था जिसे मंगलयान के बारे में जानकारी न रही हो। इस मंगलयान ने इतिहास को भी एक नई परिभाषा दे दी थी। यह दुनिया का सबसे सस्ता और कम खर्चीला मिशन भी था। इसके जरिए दूसरे देशों ने भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र का लोहा अब पुख्ता तौर पर मान लिया था। इसरो ने अपने इतिहास में न जाने कितने ऐसे पन्ने जोड़े हैं जो पूरे भारतवर्ष को न सिर्फ गर्वान्वित होने का मौका देते हैं बल्कि अंतरिक्ष के रहस्य को सुलझाने में भी अपना पूरा सहयोग दे रहे हैं। अब हो सकता है आने वाले समय में वह दिन ज्यादा दूर ना हो जब हम इससे भी अधिक दूरियों का सफर करेंगे। "

    "लंबी दूरियों का सफर!!" अचानक मिशा इस पर आकर ठहर गई। "लेकिन इसके लिए तो लाइट की स्पीड चाहिए?"

    "हां यह तो है। बिना लाइट की स्पीड के लंबी दूरियों का सफर करने में सालों साल लग जाएंगे। वैज्ञानिक इस पर प्रयास तो कर रहे हैं पर अभी तक इस पर सफलता नहीं मिली है।"

    "यह तो दिलचस्प रहेगा न। मतलब मान लो हमारे पास लाइट की स्पीड आ जाए तो फिर हम पलक झपकते ही कहां से कहां पहुंच सकते हैं"

    मिस्टर रावत हंस पड़े "जहां अंतरिक्ष का नाम आता है वहां दिलचस्पी तो अपने आप हो जाती है। अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जिसका न तो अंत है और न ही आदि। पता नहीं इसमें कितनी सारी प्रजातियां हैं जो अपने अपने तौर तरीके से अपना विकास कर रही हैं।"

    "आप का मतलब एलियन?"

    "एलियन ही समझ लो"

    दोनों की चाय खत्म हो चुकी थी। चाय खत्म होने के बाद दोनों वापस कमरे की ओर लौट पड़े।

    मिशा बीच रास्ते में बोली "आपको लगता है, एलियन हमारे आस पास होंगे?" उसने जिज्ञासावश पूछा।

    "कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी तो एलियन होने के सबूत भी नहीं मिले, कुछ अफवाहें जरूर हैं जो फैलती रहती हैं पर अगर एलियंस होंगे तो वह भी नजर आ जाएंगे।"

    दोनों की बातें ऐसे ही चलती रही, तब तक जब तक वे अपने-अपने कमरे तक नहीं पहुंच गए। एलियन, और उनसे जुड़ी बातों का तो वैसे भी अंत नहीं होता।

    ★★★

    राज की छत से सुंदर शहर का परिदृश्य आसानी से दिख जाता था। ऊंची जगह पर घर होने का यही फायदा था। शहर के दूसरे घर, यहां के घरों की तुलना में अधिक ढलान वाले क्षेत्र पर बने हुए थे। ऐसे में अगर कोई यहां की छत से शहर को देखे तो वो आसानी से 50% इलाके को देख सकता था। यहां ठंडी हवाओं का भी अच्छा आना जाना था। पहाड़ की मिट्टी की भीनी खुशबू तन बदन को तरोताजा कर देती थी। पर एक परेशानी यह भी थी कि सुबह के समय यही पहाड़ आपकी सबसे बड़ी मुसीबत बन जाते थे। इन पहाड़ों की वजह से पूर्व से होने वाला सूर्योदय यहां ठीक 2 घंटे देरी से दिखता था। वह भी तब जब सूरज पूरी गर्मी से तप रहा होता था। फिर सुबह की उमस और दम घोटने वाला वातावरण भी यहां की जिंदगी को कुछ समय के लिए नर्क बना देता था, लेकिन जैसे-जैसे दिनचर्या आगे बढ़ती थी वैसे-वैसे यह सब चीजें खुशनुमा पलों में बदलती जाती थी और शाम होते-होते आपके सामने प्रकृति का सबसे सुंदर नजारा आ जाता था। समंदर की तरफ छुपता सूरज और शहर में एक के बाद एक जलने वाली लाइटें। इस दृश्य को बालकनी पर खड़े होकर चाय की चुस्की के साथ भी देखा जा सकता था और मस्त मंद मंद चल रही हवा के आगोश में खो कर भी।

    राज ने छत पर आते ही अंगड़ाई ली और अपनी बाहों को पूरी तरह से फैला दिया। वो हल्की स्ट्रेचिंग करता हुआ छत पर दौड़ लगाने लगा।

    प्रकृति के सुंदर दृश्य को देखने के अलावा एक और दृश्य था जिसे देखने की भूख हमेशा राज के मन में मची रहती थी। उसके घर के ठीक सामने की एक छत का दृश्य! वहां स्नेहा नाम की एक लड़की रहती थी जो रोज शाम को छत पर आकर छोटे-छोटे बच्चों से खेलती थी। राज पिछले दो महीनों से उस लड़की को नोटिस करता आ रहा था।

    स्नेहा एक स्टाइलिश लड़की थी। कपड़े सादे पहनती थी पर बालो का रंग रोजाना बदलता रहता था। उसे यूट्यूब वीडियो बनाने का गहरा शौक़ था। जिसके चलते वह कभी कभी गलियों में अजीबोगरीब हरकतें भी करती रहती थी। इस चीज की वजह से ही राज उसे सबसे पहले नोटिस करने लगा था। हालांकि उसने कभी उसे पुकारने की कोशिश नहीं की, उसे देखकर कभी ऐसा लगा भी नहीं कि वह उसे बुलाने की कोई कोशिश भी करेगा। उसका मन बस उसे देख कर ही खुश हो जाता था। ठीक एक तरफा प्यार की तरह ,जिसमें आप अपने प्यार करने वालें की अदा और कुछ हरकतें देख कर ही प्रसन्नचित हों जातें हैं। यह बात मायने नहीं रखती कि आपने उनसे बात की या नहीं। आप बस अपने ख्वाबों की दुनिया बनाकर उसको उसमें शामिल कर लेते हैं। इस ख्वाबों की दुनिया में वो सारे पल आ जाते हैं जो आप चाहते हैं, एक बगीचे में घूमने से लेकर रात को फिल्म देखने तक के सारे पल, कुछ भी अछूता नहीं रहता। ‌यह चीज अपने आप में रोमांचकारी और रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। वर्चुअल लाइफ और असल जिंदगी दोनों के अपने अलग अलग महत्व हैं और इन्हें तुलना करके आंका नहीं जा सकता।

    स्ट्रक्चरिंग करते-करते वह छत की रेलिंग के पास आकर खड़ा हो गया और। वहां से उसने छत के दूसरी ओर देखा, यह देखने के लिए कि स्नेहा वहां है या नहीं। वो वहीं थी। कुछ छोटे-छोटे बच्चों से खेल रही थी।

    राज ने अपने हाथ बालकनी की रेलिंग पर रख दिए और स्नेहा को खेलते हुए देखने लगा। स्नेहा के घर की छत काफी बड़ी थी जिस वजह से वहां आसानी से बच्चों के साथ पकड़म पकड़ाई खेली जा सकती थी। स्नेहा एक बच्ची के पीछे भाग रही थी जो करीब सात-आठ साल की रही होगी। वैसे इसे भागना तो नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वह सिर्फ भागने का दिखावा कर रही थी। इसी में उसे खुशी मिलती थी और उसे देख कर राज को।

    अचानक स्नेहा नीचे गिर गई और राज के हाथ रेलिंग पर से हटकर उसे संभालने के लिए आगे बढ़ गए। वह भूल चुका था कि उन दोनों की छत के बीच की दूरी काफी ज्यादा है और उसका हाथ वहां नहीं पहुंचेगा लेकिन इसके बावजूद राज का हाथ हवा में उठ चुका था।

    राज यह देखकर मुस्कुराया और अपना हाथ पीछे कर लिया। इसी दौरान स्नेहा की नजर राज पर पड़ गई। उसने उसे हाथ अपनी तरफ करते हुए नोटिस कर लिया था। यह पहली दफा था जब स्नेहा ने राज को देखा था। जब राज को पता चला की स्नेहा उसे देख रही है तो वह तेजी से पीछे पलटा और अपनी नजरें चुराकर दूसरी तरफ हो गया। उसका दिल ट्रेन की रफ्तार से धड़क रहा था। "बाप रे!!" यकायक उसके मुंह से निकला और उसने अपने दिल की धड़कन महसूस की। "इतना डर तो कभी स्कूल की टीचर से नहीं लगा जितना इससे लग रहा है।" वो मन ही मन बोला और वहीं खड़ा रहा।

    उसका कहना सही था। अगर आप थोड़े शर्मीले किस्म के इंसान हैं तो आपके सामने ऐसी समस्या का आना आम हैं। राज के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। लड़कियों से बात करने के मामले में उसकी किस्मत ज्यादा अच्छी नहीं थी। एक लंबी सांस लेकर उसने फिर से मुड़ कर पीछे देखा, सिर्फ यह देखने के लिए की इस वक्त स्नेहा की पोजीशन क्या है।

    स्नेहा अब वहां नहीं थी और बच्चे भी नहीं दिखाई दे रहे थे। शायद या तो उसके नीचे जाने का समय हो गया था या फिर चोट लगने के कारण उसने वहां ठहरना मुनासिब नहीं समझा।

    राज ने भी एक लंबी सांस ली और वह भी नीचे आ गया।

    अब उसके शाम के दृश्यों में तो बस इतनी ही चीजें होती थी। थोड़ा बहुत प्रकृति के आनंद और थोड़ा बहुत स्नेहा को देखना।

    स्नेहा के जाने के बाद जिस छत पर स्वर्ग जैसे दृश्य दिखते थे वही छत उबाऊ लगने लगती थी।

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7 Comments

रतन कुमार

26-Nov-2021 05:46 PM

किसी को देख कर उसकी तरफ आकर्षित होने तो संभव ही है ये भी डर रहता है कि अगर उसने हमें देख लिटा तो पता नही कैसा रिएक्ट करेगी दिल मे एक कशमकश चलती ही रहती है अच्छी कहानी है

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:04 PM

Good

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Angela

31-Aug-2021 11:38 AM

Perfect!

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